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Desh Bhakti Poem In Hindi -Poem on Desh Bhakti in Hindi | देशभक्ति कविता 2023

आज हम आपके सामने कुछ ऐसी ही देश भक्ति की कविताएं पेश करेंगे जिन्हें स्कूल के बच्चे कक्षा 1,2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 व 10 के विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं| इन कविताओं को पढ़कर आपके अंदर भी देश के लिए देशभक्ति की भावना जाग उठेगी और आप भी हमारे भारत देश के प्रति अपना प्यार सम्मान जाहिर कर पाएंगे| आइये देखें कुछ देशभक्ति पर सर्वश्रेष्ठ कविताएँ |जय हिन्द ! जय भारत ! भारत माता की जय!

इस लेख में आप Desh Bhakti Poem in Hindi पढ़ेंगे और ये सभी Patriotic देश भक्ति कविताएँ देशप्रेम की भावना पर आधारित हैं| समस्त भारतवासियों के लिए स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं सहित कुछ देशभक्ति कवितायेँ हम शेयर कर रहे हैं| यह कवितायेँ प्रसिद्ध कवियों द्वारा लिखीं गयी हैं| इनमें से कई कवितायेँ आपने बचपन में भी सुनी होंगी|

Desh Bhakti Poem In Hindi -Poem on Desh Bhakti in Hindi | देशभक्ति कविता

Desh Bhakti Poem In Hindi ऐ मातृभूमि तेरी जय हो-

ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो ।
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो ।

अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो ।

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो ।
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो ।

वह भक्ति दे कि ‘बिस्मिल’ सुख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो

जय जय प्यारा, जग से न्यारा

जय जय प्यारा, जग से न्यारा
जय जय प्यारा, जग से न्यारा,
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य सुदेश!
जय जय प्यारा भारत देश।

प्यारा देश, जय देशेश,
जय अशेष, सदस्य विशेष,
जहाँ न संभव अध का लेश,
केवल पुण्य प्रवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

स्वर्गिक शीश-फूल पृथ्वी का,
प्रेम मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति नटी का टीका
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

जय जय शुभ्र हिमाचल शृंगा
कलरव-निरत कलोलिनी गंगा
भानु प्रताप-चमत्कृत अंगा,
तेज पुंज तपवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

जगमें कोटि-कोटि जुग जीवें,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवे,
सुखद वितान सुकृत का सीवे,
रहे स्वतंत्र हमेश
जय जय प्यारा भारत देश।

Hindi Desh Bhakti Kavita-Ram Prasad Bismil

चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !

साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद,

अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !
बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना,
‘बिस्मिल’ अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है

Poem On Desh Bhakti – बढ़ा कदम,बढ़ा कदम

बढ़ा कदम,बढ़ा कदम
जब तक है दम

आखिरी बूंद रक्त की काम आये
वतन के, जब तक है दम
ना कभी रुकें,ना कभी झुकेंं
अपनी आन पर मिटें,अपनी शान पर मिटें
मिट गए तो क्या ? लेंगे एक और जनम
बढा़ कदम बढा़ कदम जब तक है दम

हौंंसले बुलंद हों,रगों में आग ज्वलंत हो
आए दुश्मन तो काट उसका सर
बढ़ा कदम बढा़ कदम,ऐ जान ए वतन

तूफां की कश्ती हो या सामने मौत हसती हो
मिटाकर तू काल का भय,हो विकराल काल सम
बढ़ा कदम बढ़ा कदम जब तक है दम

Hindi Desh Bhakti Poem – झंडा ऊँचा रहे हमारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला
वीरों को हरषाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,
काँपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जावे भय संकट सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

इस झंडे के नीचे निर्भय,
हो स्वराज जनता का निश्चय,
बोलो भारत माता की जय,
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

आओ प्यारे वीरों आओ,
देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

इसकी शान न जाने पावे,
चाहे जान भले ही जावे,
विश्व-विजय करके दिखलावे,
तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

Bharat Desh Bhakti Poem in Hindi – देशभक्ति कवितायें हम होंगे कामयाब

होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन।

हम चलेंगे साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।

होगी शांति चारों ओर
होगी शांति चारों ओर, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
होगी शांति चारों ओर एक दिन।

नहीं डर किसी का आज
नहीं डर किसी का आज एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का आज एक दिन।

देश भक्ति कविता – मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है )

चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया
नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से
बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

बंदे किलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना
नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना
रफ़अत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है
ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है
मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है
हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है..

प्यारा हिंदुस्तान है (डॉ. गणेशदत्त सारस्वत)
अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है-
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।

यहीं मिला आकार ‘ज्ञेय’ को मिली नई सौग़ात है-
इसके ‘दर्शन’ का प्रकाश ही युग के लिए विहान है।

वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।
अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है-
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।
इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई-
अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।

योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।
जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।
निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ-
कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।
यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है-
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।

क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है।
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।
बल-विक्रम का सिंधु कि जिसके चरणों पर है लोटता-
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता अजेय है।
समता, ममता और एकता का पावन उद्गम यह है
देवोपम जन-जन है इसका हर पत्थर भगवान है।

Desh Bhakti Kavita (Aarti)भारत की आरती

देश-देश की स्वतंत्रता देवी
आज अमित प्रेम से उतारती ।

निकटपूर्व, पूर्व, पूर्व-दक्षिण में
जन-गण-मन इस अपूर्व शुभ क्षण में
गाते हों घर में हों या रण में
भारत की लोकतंत्र भारती।

गर्व आज करता है एशिया
अरब, चीन, मिस्र, हिंद-एशिया
उत्तर की लोक संघ शक्तियां
युग-युग की आशाएं वारतीं।

साम्राज्य पूंजी का क्षत होवे
ऊंच-नीच का विधान नत होवे
साधिकार जनता उन्नत होवे
जो समाजवाद जय पुकारती।

जन का विश्वास ही हिमालय है
भारत का जन-मन ही गंगा है
हिन्द महासागर लोकाशय है
यही शक्ति सत्य को उभारती।

यह किसान कमकर की भूमि है
पावन बलिदानों की भूमि है
भव के अरमानों की भूमि है
मानव इतिहास को संवारती।

Desh bhakti poetry in hindi

यूं तो एक चिंगारी
मंगल पांडे ने सुनवाई थी
यह अलग बात है
उन्होंने सफलता नहीं पाई थी

पर हां अन्याय के खिलाफ
आवाज तो उठाई थी
झांसी की रानी भी
रण क्षेत्र में उतर आई थी

माना दामोदर को इंसाफ
नहीं दिला पाई थी
ना जाने कितने शहीदों ने
जान अपनी गवाही थी

माना हमें 1857 में
आजादी नहीं मिल पाई थी
पर हां एक शमा तो
उम्मीद की उन्होंने जलाई थी

यह अलग बात है कि
कुछ गद्दारों ने ही छुरी चलाई थी
पर आज हम आजाद हैं
यह उस शमा से ही रोशनी आई थी..!

देशभक्ति कविता – हरी भरी धरती हो

हरी भरी धरती हो
नीला आसमान रहे
फहराता तिरँगा,
चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूर वीरता
महानता का मंत्र है
मेरा यह देश
एक अभिनव गणतंत्र है

शांति अमन चैन रहे,
खुशहाली छाये
बच्चों को बूढों को
सबको हर्षाये

हम सबके चेहरो पर
फैली मुस्कान रहे
फहराता तिरँगा चाँद
तारों के समान रहे।

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